आज हम चैत्र मास/महीने मे आने वाली शीतला षष्ठी के व्रत और उसकी पूजा विधि के बारे मे जानेगे और शीतला षष्ठी की कहानी भी सुनेगे |
शीतला माता की पूजा करने की विधि – माता शीतला देवी की पूजा करने और उनको भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पहले ही बनाकर एक दिन का बासी भोग लगाना है ।
फिर रसोई घर की दीवार पर पांचों अंगुली घी में डूबोकर छापा लगाना है। उसके बाद शीतला माता की कहानी सुनकर रात्रि को दीपक जलाना हैं। यदि घर परिवार में शीतला माता के कुण्डारे भरने की प्रथा हो तो एक बड़ा कुण्डारा तथा दस छोटे कुण्डारे मंगवाकर छोटे कुण्डारे को बने हुए बासी व्यंजनों से भरकर बड़े कुण्डारे में रख दें।
फिर उसकी हल्दी से पूजा कर दें। इसके बाद सभी कुण्डारों को शीतला माता के स्थान पर जाकर चढ़ा देना है और जाते और आते समय शीतला माता का गीत भी गाना है। शीतला माता का गीत इस पेज के अंत में दिया गया है |
पुत्र जन्म, संतान प्राप्ति और विवाह के समय जितने कुण्डारे हमेशा भरे जाते हैं, उतने कुण्डारे घर मे बढ़ोत्तरी के रूप मे आप और भर कर रख सकते है।
शीतला षष्ठी व्रत कैसे करे – यह व्रत चैत्र कृष्ण षष्ठी को किया जाता है। इसके करने से आयु तथा संतान कामना फलवर्ती होती है। कहीं-कहीं इस दिन कुत्ते को भी टीका लगाकर तथा पकवान खिलाकर पूजा करते हैं।
इस दिन व्रत रहने वाली स्त्री गर्म जल से स्नान नहीं करें और गर्म भोजन भी नहीं करना चाहिये। शीतला माता की पूजा करके पापों को नाश करने की कामना करके और शमा की प्रार्थना करें।
महत्वपूर्ण – अगर आपको शीतला माता की कहानी सुननी है तो निचे दिए गए लिंक पर जाये |

शीतला षष्ठी व्रत कहानी/कथा
शीतला षष्ठी व्रत कहानी/कथा – किसी वैश्य के सात पुत्र थे। लेकिन विवाहित होते हुये भी सब निःसंतान थे। एक वृद्धा के उपदेश देने पर सातों पुत्रवधूओं ने शीतलाजी का व्रत किया तथा पुत्रवती हो गई। एक बार एक पत्नी ने व्रत की उपेक्षा करते हुए गर्म जल से स्नान कर भोजन किया तथा बाकी बहुओं से भी यह करवाया।
उसी रात में वह पत्नी अपने सपने मे अपने पति को मृतक देखती है। फिर वो रोती-चिल्लाती पुत्रों तथा बहुओं को देखती है तो उनको अपने सोने के स्थान पर मृत पाती है। उसके बाद वो जोर जोर से रोने लगती है
और उसका रोना बिलखना सुनकर आस-पास पड़ौस के लोग आ जाते है और यह सब देख कर माता शीतला के व्रत के प्रति उपेक्षा करने का प्रमाण ही बताते हैं। अपने ही हाथ की ज्वाला अपने जीवन में लगी देखकर वह पागलो जैसी चीखते हुए वन में निकल पड़ती है।
मार्ग में चलते हुए उसे एक वृद्ध महिला मिली वह वृद्धा स्वयं शीतला माँ थी। और उसके द्वारा किये गए गर्म जल से स्नान की गर्मी से जल रही थी| शीतला माता ने उस महिला से दही मांगा। उसने दही ले जाकर भगवती शीतला माता के सारे शरीर पर लेप कर दिया। जिससे उनके शरीर की ज्वाला शांत हो गयी।
उसके बाद उस महिला ने अपने किये हुए काम पर बहुत पश्चाताप हुआ तथा अपने पति को जीवित करने की भगवती शीतला माता से प्रार्थना की। तब शीतला माता ने प्रसन्न होकर उसके पति-पुत्रों को पुनः जीवन दिया।
उसी प्रकार माता शीतला का व्रत करने से हम सबको वैसे ही पुनः जीवन प्रदान करें।
शीतला माता का गीत
नोट– निचे दिए गए इस गीत में श्री गजेन्द्र व नरेश जी के स्थान पर अपने परिवार के सदस्यों का नाम ले।
मेरी माता को चिनिये चौबारो, दूधपूत देनी को चिनिये चौबारो ।
कौन ने मैया ईट थपाई, और कौन ने घोरौ है गारौ।
श्री गजेन्द्र ने मैया ईट थपाई, नरेशजी घोरौ है गारौ।
मेरी माता को चिनिये चौबारो ।।