सांपदा माता की कथा/कहानी व्रत और पूजा विधि – आज हम सांपदा माता की कथा/कहानी को सुनेगे और सांपदा माता का डोरा कैसे लेते है और व्रत कैसे करते है और डोरा कैसे छोड़ते है और व्रत कैसे खोलना है उसके बारे में विस्तार से बात करेंगे |
सांपदा माता का डोरा कैसे कब लेना है और उसकी पूजा विधि – होली के दूसरे दिन छारंडी को कच्चा सूत का सोलह तार का धागा, सोलह गांठ कुंकु या हल्दी में रंग कर हाथ में लेकर कहानी सुननी है और सोलह दाने ही गेहूँ के भी लेने है।
कहानी सुनने के बाद डोरे को गले बांधे या पूजाघर या मंदिर में रखें। सवा महिने के बाद वापिस कहानी सुनकर वह डोरा पीपल में या तालाब में विसर्जित कर देना हैं। उस दिन व्रत (एक ही समय भोजन) करते हुए एक ही धान की रसोई खानी हैं।

सांपदा माता की कथा/कहानी
राजा नल की कहानी – एक राजा था। राजा का नाम नल और रानी का नाम दमयन्ती था। उनके बहुत धन था। एक दिन महल के नीचे बुढ़िया सांपदा का डोरा बाट रही थी और सांपदा माता की कहानी कह रही थी। इसलिये महल के नीचे बहुत भीड़ हो गई थी। हर कोई सांपदा का डोरा ले रहे थे। रानी ने ऊपर से देखा तो अपनी दासी को कहां कि नीचे देखकर आ इतनी भीड़ क्यों हो रही हैं ? दासी ने आकर कहा कि एक बुढ़िया सांपदा का डारा दे रही हैं। उससे सुख-समृद्धि, धन-लक्ष्मी होती हैं।
वो डोरा कच्चे सूत का सोलह तार, सोलह गांठ देकर हल्दी में रंग के पूजा करते हैं। सोलह दाना गेहूँ का हाथ में लेकर कहानी-कथा सुनकर वह डोरा गले में बांध देते हैं। रानी ने भी डोरा मंगाकर बताए हुए विधि-विधान से पूजा करके वह डोरा अपने गले में पहने हुए हार के साथ बांध दिया। बाहर से राजा आये तब उसके गले में डोरा बांधा हुआ देखा तो पूछा यह डोरा क्यों बांध रखा हैं, तो रानी ने कहा- यह सांपदा माता का डोरा हैं। इससे घर में सुख-समृद्धि व धन-लक्ष्मी आती हैं तो राजा ने कहां अपने तो पहले से ही बहुत धन-दौलत हैं।
तेरे इतने हीरे मोती के गहनों में यह डोरा अच्छा नहीं लगता है। राजा के इतना कहने पर भी रानी ने डोरा नहीं खोला तो राजा ने डोरा खिंचकर तोड़कर फेंक दिया। उसी दिन राजा को स्वप्न में सांपदा माता बोली कि मैं यहां से जा रही हूँ। अब तेरे सांपदा की आशीष से सारा धन का कोयला हो जायेगा। जितना भी सुख का गुमान किया, उतना ही तुमको कष्ट भोगना पड़ेगा। राजा उठकर देखे तो सपने की बात सच्ची जान कर रानी को बोला। तुम तेरी सखिया के पास जाकर आ। रानी सखिया के पास गई जब बात तो सबको करी लेकिन कोई खातिरदारी नहीं करी।
रानी आकर राजाजी ने बात बतायी। जब राजाजी ने बोला-हम दूसरे राज्य में चलकर जीवन काटेंगे। यहां पर एक ब्राह्मण की लड़की को छोड़ देंगे। जिसको दिया वही पानी भरेगा और घर की देखभाल करेगा। राजा-रानी महल से चलने लगे तो महल का कंगुरा टेढ़ा हो गया। घर से निकलकर वे लोग तालाब पर पहुँचे। वहां राजा ने रानी को दो तीतर लाकर दिये और बोले। मैं स्नान करके आऊं। तब तक तुम इन्हें भूनकर रखना। रानी ने तीतर को भूनकर रखा। राजा स्नान करके आये। दोनों भोजन करने के लिये बैठे तो दोनों भूने हुए तीतर उड़ गए।
वहां से राजा-रानी रवाने होकर अपने दोस्त खाती के यहां गये तो खाती ने पूछा कौनसे वेश में आए है तो आदमी ने बताया गरीब वेश में आया हूँ। तब खाती ने कहा कि मेरे पुराने घर में उतार दो। राजा-रानी खाती के पुराने मकान में गये। वहां खाती के सोने के बरछी बसोला (औजार) पड़े थे। उनको जमीन निगल गई। तब राजा-रानी से बोला कि हम यहां से निकल चलते हैं। नहीं तो अपने ऊपर चोरी का नाम आ जायेगा। वहां से वह अपने दोस्त राजा के यहां गया। तब राजा ने पूछा-कौनसे वेश में आया हैं
सबने कहां मैले कपड़े में आया हैं तो राजा ने भी पुराने महल में उतार दिया। वहां खुंटी पर सवा करोड़ का हार टंगा हुआ था। राजा-रानी के उस महल में जाते ही दीवार पर मोर मण्डा हुआ था। वो खूंटी पर टंगा हुआ हार मोर ने निगल लिया। तब राजा ने रानी से कहा कि यहां से भी चलना पड़ेगा, नहीं तो चोरी का आरोप लग जायेगा। तब सब कोई बोलने लगे कि राजा का दोस्त आया था जो हार चोरी करके ले गया। राजा ने कहां मेरा दोस्त चोर तो नहीं था, लेकिन गरीबी के कारण ले गया होगा। वहां से राजा-रानी अपनी बहन के यहां गये। सब ने कहां कि तेरा भाई आया हैं। बहन ने पूछा कौनसे हालत में आया हैं सबने कहां गरीबी के हालात में आया हैं। बहन ने कहां सरोवर की पाल पर उतार दो। बहन एक धन से भरा घड़ा भाई के पास लेकर आयी।
भाई जब घड़ा देखने लगा तो सारा धन काला हो गया। तब भाई ने कहां यह घड़ा यही पर गाड़ दो। राजा-रानी वहां से माली के बगीचे में गये। बगीचे में पैर रखते ही बगीचा हरा-भरा हो गया। तब माली ने पूछा ऐसी कौनसी पुण्यात्मा आयी हैं, जिससे बारह वर्ष से सुखा हुआ बगीचा हरा-भरा हो गया। राजा ने कहा-हम तो भिखारी हैं। तुम हमको रख लो। माली ने उनको काम पर रख लिया। रानी ने कहा- मैं चार काम नहीं करूंगी। एक दीया नहीं जलाऊंगी, बिस्तर नहीं बिछाऊंगी, जुठा बर्तन साफ नहीं करूंगी, झाडू नहीं निकालूंगी। तब मालीन बोली- मैं तेरे से कुछ नहीं कराऊंगी। तुम केवल फूल की माला गूंथ कर बाजार में बेचकर आना और राजा के लिये कुएं में से पानी निकाल देना।
जब रानी बाजार में फूल की माला बेचने गयी तो औरतों ने कहा थोड़ी देर बैठ, हम कहानी सुनकर लेंगे। रानी ने पूछा-यह आप क्या कर रही हैं और किसी कहानी सुन रही हो ? तब औरतों ने कहा कि हम सांपदा माता की कहानी सुन रहे हैं। रानी ने कहा-मैं भी सांपदा माता की कहानी सुनती थी। लेकिन मेरे पति ने सांपदा माता का डोरा फेंक दिया। उस दिन से सांपदा माता मेरे से नाराज हैं। बारह वर्ष हो गये, अगर सांपदा माता हमारे ऊपर प्रसन्न हो जाये तो मैं सांपदा माता का डोरा ले लूं। उसी दिन सांपदा माता राजा के सपने में आयी तो राजा ने पूछा-आप कौन है? सांपदा माता बोली-मैं तेरे पास वापिस आऊंगी। राजा ने पूछा कैसे मालूम चलेगा।
जब सांपदा माता बोली कि सुबह कुआं से पानी निकालेगा तब पहली बार में गेहूँ की बाली निकलेगी, दूसरी बार में हल्दी की गांठ, तीसरी बार में कच्चा सूत निकलेगा। तब समझ जाना कि सांपदा माता आ गयी हैं और रानी को डोरा दिलाकर घर चले जाना। दूसरे दिन राजा कुएं से पानी निकालने लगा तब सांपदा माता ने कहा वैसा ही हुआ। फिर रानी को डोरा दिलाकर वापिस अपने महल के लिये रवाना हुए तो माली को बोले कि हमारे बारह वर्ष पूरे हो गये हैं। हमारे दिन अच्छे आ गये और वहां से अपनी बहन के यहां गये, तो बहन ने पूछा-कौनसे वेश में आये हैं, सबने कहां अच्छी हालात में आए हैं।
बहन ने कहां मेरे नये महल में उतार दो। भाई ने कहा-हमको जहां पहले उतारे थे वहीं पर उतारो। वहां जाकर पहले गढ़ा हुआ घड़ा निकाला तो घड़े में हीरे मोती जगमगा रहे थे। राजा ने बहुत सारा धन बहन को दिया और वहां से अपने दोस्त राजा के यहां गये तो वहां भी जो हार खूंटी पर टंगा हुआ मोर ने निगल लिया था वो भी हार खूंटी पर ही टंगा हुआ था। वहां से अपने गांव के खाती के पास गये। खाती के औजार भी जो धरती निगल गयी थी वह भी वापिस खाती के पास आ गये। वहां से राजा-रानी सरोवर की पाल आये, देखा तो दोनों तीतर भुने हुए धरती पर पड़े हैं।
राजा-रानी मन में समझ गये कि समय खराब था। ये भी उड़ गये थे। आज वापिस आ गये है। वहां से राजा-रानी अपने महल में आये, जो कंगुरा टेढ़ा हो गया था वह भी वापिस सीधा हो गया और पहले जैसा ही वापिस अच्छा हो गया। जो ब्राह्मण की बेटी को देखभाल के लिये छोड़ गये थे। उसको धर्म की बेटी बनाकर उसका विवाह कर दिया। पीछे रानी सांपदा माता का उजमणा किया। उसमें सोलह ब्राह्मणी को भोजन करवाया या सोलह जगह परिवार में मिठाई दे देवें। सांपदा माता के उजमणा में हलवा-पुड़ी की रसोई होती हैं। रानी ने कहा-हे सांपदा माता तुमने मेरी लाज रखी, वैसी ही सबकी लाज रखना। जैसा मेरे में दुःख-कष्ट दिया वैसा किसी को भी मत देना।
बोलो सांपदा माता की जय