कोकिला व्रत और उसकी कथा

कोकिला व्रत और उसकी कथा – कोकिला व्रत भारतीय महीनो के अनुसार हर तीन साल मे एक बार आता है और ये व्रत वो वो महिलाये या लड़किया करती है जिन्हे भगवान शिव जैसा अत्यन्त श्रेष्ठ पति चाहिए होता है |

कोकिला व्रत कब आता है ? – जिस साल में (अधिक आषाढ़) अर्थात एक महीना ज्यादा आता हैं। उसमें आषाढ़ माह मे पूर्णिमा का व्रत किया जाता हैं, उसे कोकिला व्रत कहते हैं।

कोकिला व्रत का महत्त्व – माता पार्वती जी ने एक साल आषाढ़ के दूसरे पूरे मास में व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया था और इस व्रत से प्रसन होकर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था इसलिए कुवारी लड़किया इस व्रत को करती है |

कोकिला व्रत पूजा विधि – कोकिला व्रत मे सुबह जल्दी उठकर नदी-तालाब पर स्नान करते हैं। अगर तालाब पर नहीं जा सके तो पानी में थोड़ा गंगाजल डाल कर स्नान करते हैं। उसके बाद नित्य भगवान शिव की पूजा-आरती करके ब्राह्मण भोजन करवाना है

और श्रृद्धानुसार कपड़े व दक्षिणा देकर विदा करना है। जो व्यक्ति इस व्रत को कर रहा है उसे एक समय भोजन करना है। चटाई-दरी पर सोना व ब्रह्मचर्य का पालन करना है। यह व्रत अखण्ड सौभाग्यवती के लिये किया जाता है।

कोकिला व्रत, कथा पूजा विधि और व्रत का महत्त्व
कोकिला व्रत और कथा

कोकिला व्रत और उसकी कथा

कोकिला व्रत कथा – पुराने समय में एक बार राजा दक्ष ने अपने महल में एक महायज्ञ का आयोजन किया था। सभी देवता-ऋषियों में ऐसा कोई नहीं बचा था। जिसे राजा दक्ष ने यज्ञ में न बुलाया हो। परन्तु उन्होंने अपने बेटी-जवाई शिवजी को निमंत्रण नहीं दिया था।

जब पार्वतीजी ने आकाश मार्ग से सभी देवता व ऋषि मुनियों को अपनी पत्नियों के साथ विमान में जाते हुए देखा तो अपने पति शिवजी से पूछा-प्रभू! ये देवगण व ऋषि मुनि अपनी पत्नियों के साथ बैठे कहे जा रहे हैं। तब शिवजी ने बताया तुम्हारे पिता के यहां यज्ञ महोत्त्सव हैं। उसी में हिस्सा लेने जा रहे हैं।

तब सती ने कहा-नाथ ! हमें भी वहां चलना चाहिये। शिवजी ने समझाया हमें तो कोई निमंत्रण नहीं है प्रिय। लेकिन सती हठ करने लगी और समझाने पर भी नहीं मानी तो शिवजी ने अपने गणों के साथ सती को पिता के घर भेज दिया।

जब सती से माता और बहने पिता के डर से नहीं बोली तो माता सती बहुत दुःखी हुई और यज्ञ में शिवजी का हिस्सा भी नहीं निकला तो सती इतनी अपमानित होकर वहीं अग्नि में भस्म हो गयी तो उनके साथ आये गण यज्ञ का विध्वंस करने लगे।

और उनमे से कुछ गण शिवजी को सूचना देने पहुंच गये। शिवजी भी अत्यन्त क्रोधित होकर यज्ञ विध्वंस के लिये वीरभद्र के साथ अपने गणों की विशाल सेना भेजी। उत्त्पात मचाते हुए गणों की विशाल सेना ने बहुत-सा नुकसान किया।

तब सभी देवता ने मिलकर विष्णु भगवान की आराधना की। विष्णु भगवान ने प्रकट होकर कहा कि शिवजी को प्रसन्न करने का उपाय करो। अब सब मिलकर शिवजी की आराधना करने लगे। देवता की आराधना से शिवजी प्रकट हो गये।

शिवजी को मनाकर राजा दक्ष के घर ले गये और कहा कि राजा दक्ष का यज्ञ पूरा करो। शिवजी प्रसन्न होकर राजा दक्ष के घर गये तत्पचात बकरे का सिर राजा दक्ष के समक्ष लाया और संजीवनी विधि से उनको जीवित कर दिया व यज्ञ भी पूर्ण किया और सभी चोट ग्रस्त देवता को भी जीवित किया।

परन्तु यग मे आये सभी ऋषि ने क्रोधित होकर सती को श्राप दिया कि वह उनकी आज्ञा नहीं मानने के कारण हजारों वर्ष तक कोकिला (कोयल) बनी हुई वन-वन में घूमती रहेगी। इस प्रकार सती हजारों वर्ष तक कोकिला (कोयल) बनी रही कर

फिर पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई और ऋषियों के आज्ञानुसार आषाढ़ के दूसरे पूरे मास में व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया। इससे प्रसन्न हुए शिवजी ने पार्वतीजी के साथ विवाह कर लिया। इसलिये इस व्रत का नाम कोकिला व्रत हुआ।

यह कोकिला व्रत कुंवारी लड़किया अत्यन्त श्रेष्ठ पति प्राप्त करने के लिए करती है |