सूरज (रविवार) रोटा की कहानी – आज हम सूरज रोटा की कहानी को सुनेगे और रविवार के दिन डोरा कैसे लेना है उसकी विधि क्या है और उसकी कहानी विस्तार मे जानेगे |
रविवार सूरज (रोटा) – सूर्य की पूजा विधि – होली के दूसरे दिन छारंडी के दिन यह डोरा लेते हैं। चैत्र के अगले रविवार को ही डोरा छोड़ते हैं। होली के दूसरे दिन ही सांपदा माता का डोरा लेते है। कहानी सुनते समय कच्चे सूत का आठ तार का धागा लेते हैं और उसमें आठ गांठ लगाते हैं।
शीतला सप्तमी के आने वाले रविवार को सूरजजी व पीपल, तुलसी की पूजा करें। पूजा की रोटी के बीच में छेद कर लेवें। शक्कर डालें, हल्दी, कुंकु, चावल, मेहन्दी, मौली, पैसा, पान, सुपारी, कच्ची सूत, गेहूँ, अगरबत्ती, फूल आदि से पूजा करके नथ पहन कर, पीपल का पान और रोटा में से सूरज भगवान का दर्शन करें।
उजवणा के दिन आठ औरतों व साख्या को भोजन करवाना और बायणो निकालना व कहानी सुननी है |

सूरज (रविवार) रोटा की कहानी
एक माँ-बेटी थी। माँ गायें चराने के लिये जाती थी। चैत्र मास में सूरज रोटा का रविवार आया। तब माँ ने बेटी से कहा- आज तेरे और मेरे लिये दो रोटा बनाना। मैं गायें चराकर वापिस आ रही हूँ। उसके बाद हम दोनों पूजा करेंगे। माँ का रोटा बनकर तैयार हुआ। जितने में सूरज भगवान जोगी का रूप धारण करके बेटी को बोला- “मुझे रोटी दे।” तब बेटी ने कहा- मेरा रोटा सिकने के बाद देती हूँ। उस समय जोगी बोलता है कि मैं तो जाऊं।
तब बेटी माँ के रोटे में से किनार खण्डित करके जोगी को दे देती है। माँ गायें चराकर घर आई। बेटी को कहा मेरा रोटा कहां है ? माँ अपना रोटा खण्डित देखकर पागल जैसी हो गयी। वह घी-रोटी के साथ किनार-किनार कहती हुई नगरी में पागल जैसी घूमने-फिरने लग गयी। बेटी डरकर पीपल के पेड़ पर छुपकर बैठ गयी। ऐसे करते-करते दो-चार दिन हो गये। बेटी भूखी-प्यासी पीपल के पेड़ पर बैठी ही रही। सूरज भगवान को उसके ऊपर दया आई।
पानी का लोटा और चूरमा की कटोरी सूरज भगवान उसकी बेटी के पास भेज देते हैं। एक दिन राजा का कंवर शिकार खेलने के लिये आया और पीपल की छाया के नीचे बैठ गया और बोला- “अरे! कितनी ठण्डी हवा आ रही हैं।” कोई पानी पिला देवे तो बहुत अच्छा होगा। इतना कहते ही बेटी ऊपर से पानी डालती है। पानी पीने के बाद राजा का बेटा कहता है कि मुझे तो बहुत जोर से भूख लगी हैं। कोई मुझे भोजन करवा दे तो बहुत अच्छा होगा। इतना सुनते ही वह ऊपर से लाडु डालती है। राजा का बेटा सोचता है कि ऊपर कोई न कोई हैं।
वह अपने सिपाहियों को ऊपर चढ़कर देखने के लिये कहा। सिपाही ऊपर चढ़कर देखते हैं तो उनको कुछ भी नजर नहीं आता है। जब कंवर स्वयं पीपल के पेड़ के ऊपर चढ़कर पत्ता-पत्ता देखता है तो उन्हें एक लड़की पत्ता में छिपी हुई दिखाई देती है। राजा का कंवर बोलता है कि तुम कौन हो ? जब वह बोलती है मैं मानव हूँ। राजा का कंवर उस लड़की से पूछता है कि क्या तुम मेरे साथ विवाह करोगी ? जब वह बोली-मेरे परिवार में कोई नहीं हैं। मैं गरीब हूँ और आप राजा के बेटे हो। वह राजा का कंवर उसकी बात को नहीं मानकर गाजा बाजा के साथ विवाह करके अपने घर लेकर आ गया।
एक रानी महल में खड़ी थी तो उन्हें “घी रोटो के साथ किनार” की आवाज सुनाई दी तो वह झरोखे में आपकी माँ ने आवाज देते हुए पहचान लेती है और अपने नौकर के साथ माँ को महल में बुलाकर एक कमरा में बन्द कर देते हैं। एक दिन राजाजी सभी कमरे की चाबियाँ मांगते हैं तब रानी सभी कमरे की चाबियाँ दे देती है। लेकिन जिस कमरे में माँ बन्द होती है उस कमरे की चाबी नहीं देती है।
राजा जिद्द करके माँ बन्द होवे उस कमरे की चाबी लेकर कमरा खोलकर देखे तो उसमें एक सोना की शिला पड़ी देखें। तब राजाजी पूछते है कि ये क्या है? रानी कहती है कि मेरे गरीब घर की भेंट हैं। राजा कहता है कि मुझे तेरा पीहर देखना है। जब रानी कहती है कि मेरा पीहर कहा हैं।
मुझे तो आप पीपल के पेड़ के ऊपर से विवाह करके लाए हैं। राजाजी इस बात को माना नहीं। तब रानी सूरज भगवान ने विनती करके कहा कि मुझे सवा प्रहर के लिये पीहर दिखाओ। सूरज भगवान रानी का और आपका सत् रखने के लिये पीपल के नीचे ही सवा प्रहर का पीहर वास सपना में आकर दे दिया। रानी राजा को लेकर पीपल के नीचे आई तो वहां पर महल-मालीया में सारा परिवार को देखा। कोई कहने लगे कि फुफाजी आया, तो कहने लगे कि मासाजी आया। खूब खातिरदारी हुई।
रानी कहने लगी कि घर चलना है। लेकिन राजा का मन वापस चलने का नहीं हुआ। मगर रानी तो सवा प्रहर के लिये ही पीहर रहने के लिये मांगा। जो अपने बच्चों को लकड़ी से डराकर रूलाने लगी। जब राजा-रानी सीख लेकर निकल गये। राजाजी घोड़ी का ताजना वहीं पर ही भूल गये। थोड़ा आगे जाने के बाद राजा को याद आई। जब राजाजी ने बोला-रथ वापिस घुमाओ। रानी के मन में खटका कि अब वहां रहने के लिये पीहर नहीं मिलेगा। इस कारण राजाजी को कहा कि इतना समान (सीख) देने के बावजूद भी इतनी-सी के लिये वापिस क्यों जायें। राजा तो रानी की बात को सुनी-अनसुनी करके वापिस अपने रथ को घुमा लिया।
वहां जाकर देखें तो पीपल के नीचे कुछ नहीं है। घोड़ी का ताजना पीपल के पेड़ पर लटक रहा था और भोजन किये हुई पतले वहां पर पड़ी थी तो वापिस आकर रानी जी को पूछा कि ये क्या माजरा हैं? आपके रानीजी पीपल के ऊपर आकर बैठकर सूरज भगवान से सवा प्रहर के लिये पीहर रहने को मांगा। जब से माँ सोना की शीला हो गयी। सभी बातें सच्ची-सच्ची बता दी। इसके बाद राजा ने नगरी में कहलवाया कि इस रविवार को जो सूरज भगवान का व्रत करेगा, उसके लिये भगवान पीहर वास अजर-अमर रखेंगे।