चैत्र माह की शीतला माता की कथा/कहानी – आज हम चैत्र महीने में आने वाले शीतला माता के पर्व पर कही जाने वाली कथा/कहानी सुनेगे |
ये कहानी हम शीतला षष्ठी, सप्तमी, अष्ठमी, नवमी और शीतला दसमी को सुन सकते है |
अगर आपको शीतला छठ (षष्ठी) व्रत कथा और पूजा विधि जाननी है की शीतला माता की पूजा कैसे करनी है और व्रत कैसे करना है भोग कैसे लगाना है तो नीचे दिए गए लिंक पर जाये
शीतला छठ (षष्ठी) व्रत कथा और पूजा विधि
शीतला माता की कथा/कहानी
शीतला माता की कहानी – एक समय शील और ओरी दोनों बहनें थी। होली का अंतिम दिन आते ही दोनों बहनें बोली- हम शहर चलकर देखें कि लोग हमारा कितना मान-सम्मान करते हैं।
अपनी मान्यता को देखने के लिये दोनों बहनें शहर में आकर सबसे पहले वे दरबार में गई तो वहां पर नौकर-चाकर काम कर रहे थे। दोनों बहनों ने उनको जाकर बोला कि हमें भी कुछ न कुछ देवो।
तब नौकर-चाकर ने कहा-हमारे पास तो केवल घोड़ा के लिये दाना उबल रहा है। उन्होंने गर्म-गर्म दाना दोनों बहनों को देने पर वह जल गई। जिससे उनके हाथ में फफोला (छाले) हो गये।
इस कारण दोनों बहनों ने श्राप दे दिया कि सातवें दिन ही आपकी नगरी में आग लग जायेगी। ऐसा कहकर दोनों बहन वहां से चली गयी। इसके पश्चात् एक सेठ के घर आकर बोली- मुझे कुछ ठण्डी-ठण्डी खानें के लिये देवो।
तभी उनकी छोटी बहू बोली मेरे सासुजी तो बाहर गये हुए हैं। फिर भी वह डरती-डरती मुश्किल से एक-एक कटोरी करबो लेकर आई तो दोनों बहनें बोलने लगी कि थोड़ा-सा और करबा लाओ व जितना भी है वह सभी डाल देवो और उस पर सीधा ढक्कन ढ़क दो। उस समय माताजी बोले कि तुम्हारे नगर में सातवें दिन आग लग जायेगी, किन्तु तुम्हारा घर बच जायेगा। तब छोटी बहू बोली ! मेरे घर के साथ-साथ मेरे पड़ौसी का भी घर रखो।
क्योंकि मेरी साख कौन भरेगा ? तब माताजी ने एक कोरो करवो देकर कहा कि तेरे और पड़ौसी के घर के आगे कार (रेखा) खींच दी है। फिर दोनों बहना बोली कि मेरे माथे से जूएँ निकालो, पर तुम डरना मत।
हम शील और ओरी दोनों बहनें हैं। हम दोनों के आगे-पीछे दोनों जगह आंखें हैं। छोटी बहू बोली मेरी नगरी में आग तो लगेगी। लेकिन कोई आकर पूछेंगे तो मैं उन्हें क्या बताऊं ? आप जहाँ विराजते हैं वहां का स्थान मुझे बता दो।
तब दोनों बहना बोली-मैं खोखले पीपल में बैठी हूँ, ऐसा कहकर वह चली जाती है। जैसे ही सातवें दिन आग लगती है तो सारी नगरी जल जाती है। तब राजा बोलता है कि हमारी नगरी कैसे जल गयी। देखकर आओ कि कोई घर बचा है क्या ? तब एक ने कहा कि हां एक घर बचा है।
तब राजा उसके पास गया और कहा कि ए बाई तुम क्या कामण- डुमण जानती हो, जिससे तुम्हारा घर बच गया। तब छोटी बहू बोली ! शील और ओरी दो बहनें आई थी।
तब उनको घोड़ी का गर्म-गर्म दाना डालने से वह जल गयी। उनके हाथ में छाला (फोड़े-फुंसी) हो गये। जिससे वे गुस्सा में आकर श्राप दे दिया कि तुम्हारी नगरी में आग लग जायेगी। फिर मेरे घर आयी, तब मैंने उन्हें ठण्डा-ठण्डा जल देकर ठण्डा किया और पड़ौसी का भी घर रखा।
अब वे दोनों बहना खोखले पीपल में बैठी है। राजा वहां गया और उनसे माफी मांगी और पांव पकड़ कर कहा-माताजी हम से गलती हो गयी, आप हमें क्षमा कर दो।
तब माताजी ने कहा कि आप माताजी के नाम का स्थान बनाकर मेरी वहां पर स्थापना करो और नगरी में कहलाओ कि होली के बाद माताजी का दिन आवे तब ठण्डा खाओ। हो सके तो आठ बार खाओ, चार बार खाओ, दो बार खाओ, लेकिन बच्चों की माँ को तो एक बार जरुर जरुर ठण्डा भोजन करना है। माताजी सभी पर प्रसन्न हो गये।
जो भी व्यक्ति माताजी की इस कहानी को कहते समय, सुनते समय या बीच-बीच में हुंकारा देते हैं उन सभी को माताजी ठण्डा झोला देते हैं।
