पंथवाडी माता की कथा/कहानी और महत्त्व – आज हम पंथवाडी माता की कथा और कहानी को सुनेगे और इसका क्या महत्त्व है इसके बारे में जानेगे |
पंथवाडी माता की कथा का महत्त्व – अगर किसी व्यक्ति को अपने रिस्तेदारो से रिस्तो को मजबूत करना हो या किसी व्यक्ति विषेस से आपकी बन नहीं रही हो
और आप चाहते हे की आपका रिस्ता उस व्यक्ति से मजबूत हो जाये या वापस जुड़ जाये तो आपको पंथवाडी माता की कथा और कहानी सुननी चाहिए |
कथा को सुनने के लिए आपको सबसे पहले सात चावल के टुकड़े अपनी हतेली में लेने है और उसे अंगूठे से दबा लेना है उसके बाद आपको कथा सुननी है
और कथा पूरी होने के बाद आपको वो चावल के दाने पंथवाडी के वृक्ष यानी की पीपल या फिर खेजड़ली का पेड़ को अर्पित करना है और उसके बाद आपको हाथ जोड़कर अपनी मनोकामना को माँगना हे |

पंथवाडी माता की कथा/कहानी
पंथवाडी माता की कथा/कहानी – एक समय की बात है एक गुजरी थी। वह हर रोज दूध बेचने जाती थी। एक दिन वह बीमार हो गयी। उस दिन उसने अपनी बहू को दूध बेचने के लिये भेजा। बहू को दूध बेचना आता नहीं था।
तो वह पंथवाड़ी के मंदिर जाकर बैठ जाती। वहां पर बहुत-सी औरतें पंथवाड़ी के जल सींचने आती। तब वह औरतों से पूछती कि जल सींचने से क्या होता है? तब औरतें कहती कि जल सींचने से अन्न-धन-लक्ष्मी आती हैं।
तब वह भी जल की जगह सभी दूध पंथवाड़ी पर सींच कर घर आ जाती। सास पूछती पैसे लाई हो, तब वह कहती कि एक तारीख आने पर दे देंगे। अब एक तारीख भी आ गयी, सास ने कहा पैसे लाना। वह पंथवाड़ी के मंदिर में हमेशा की तरह दूध सींचा और बोली।
हे माता ! सासुजी ने पैसे मंगायें हैं। अब मैं क्या जबाव दूंगी, बहु रोने लगी। तब पंथवाड़ी माता ने कहा-यह कंकर-पत्थर है। जो इसे घड़े में भरकर ले जा और इसे ओबरी में डाल देना।
उसने वैसा ही किया, सास ने पूछा-पैसा कहां है। बहू ने कहा-ओबरी में से निकाल लो। तब सासुजी देखती है तो वहां पर हीरे मोती जगमगा रहे हैं। सास ने बहू से कहा-यह हीरे मोती कहां से चुरा कर लाई हो।
बहू ने कहा-माँजी मैंने चुराये नहीं है। यह सब पंथवाड़ी माता की कृपा है। फिर उसने सारी बात अपनी सास को बतायी। जिससे सासु बहुत खुश हुई। दोनों ही सुख-पूर्वक रहने लगी।
हे पंथवाड़ी माता जैसा इन सासु-बहु का मान रखा, वैसा ही संसार में सभी सासु-बहू का मान रखना। पंथवाड़ी माता की जय हो।