सुखी वैवाहिक जीवन का एक मात्र उपाय – एक सुखी और सफल दाम्पत्य जीवन या वैवाहिक जीवन वो होता है जिसमे शांति बनी रहे और एक वैवाहिक रिश्ते में शांति बनी रहे इसके लिए सिर्फ एक ही उपाय है
वो है एक साथी दूसरे साथी की भावनाओ/इछाओ को समझे तो आईये जानते है कैसे आप एक सुखी और सफल वैवाहिक जीवन का निर्माण कर सकते है |
सुखी वैवाहिक जीवन का एक मात्र उपाय
विवाह एक पवित्र बंधन होता है, जिसमें प्रेम, विश्वास, सहयोग और समर्पण की अपेक्षा होती है। जब ये स्तंभ कमजोर पड़ते हैं, तब व्यक्ति भावनात्मक असंतुलन का शिकार हो सकता है। कई बार इसी असंतुलन का परिणाम होता है विवाह के बाद सम्बन्ध।
इस तरह के संबंधों के कारण अपराधों में बढ़ोतरी भी हो रही है।
जब जीवनसाथी के बीच संवाद की कमी हो जाती है, तो वह अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षित हो सकता है। अकेलापन धीरे-धीरे अवसाद या चिंता का रूप भी ले सकता है। व्यक्ति को यदि लगातार आलोचना, तुलना या अस्वीकार का सामना करना पड़े तो उसका आत्म-सम्मान कमजोर होने लगता है।
ऐसे में कोई ऐसा व्यक्ति जो उसे स्वीकारता है, उसकी संराहना करता है, वह आकर्षण का केंद्र बन सकता है। विवाहेतर संबंधों का एक और बड़ा कारण यौन संतुष्टि की कमी है।
यदि इस विषय पर खुले संवाद की जगह शर्म, डर या असहजता हैं, तो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को बाहर पूरा करने की कोशिश कर सकता है। बचपन के आघात, पूर्व रिश्तों की कड़वी यादें या असुरक्षा की भावना भी व्यक्ति को अस्थिर बना देती है। वह बार-बार प्यार की तलाश में भटकता रहता है|
साथ ही करियर, घर-परिवार की अपेक्षाओं से यदि व्यक्ति मानसिक रूप से टूटने लगता है तो वह दूसरे विकल्पों ओर आकर्षित होता है। जीवन के कुछ दौर ऐसे होते हैं जब व्यक्ति के विवाहेतर संबंधों में उलझने की आशंका रहती है।
जैसे वैवाहिक जीवन के पहले 5-7 वर्षों में- जब प्रेम पर धीरे-धीरे जिम्मेदारियां हावी होने लगती हैं। बच्चों के जन्म के बाद महिला का पूरा ध्यान बच्चों पर होता है तो दूसरा साथी उपेक्षित महसूस कर सकता है। 35-45 वर्ष की उम्र में जब व्यक्ति अपने जीवन की उपलब्धियों और अधूरे सपनों पर विचार करता है
और ‘कुछ नया’ या ‘खोया हुआ समय’ पाने की चाह में इस तरह की गतिविधियों में उलझ जाता है। जब रिश्तों में विवादों का समाधान नहीं होता, तब भी खतरा बना रहता है।इस तरह की गतिविधियों का मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है।
संवाद अर्थात बात चीत ही हर रिश्ते की नींव है। पति-पत्नी को एक-दूसरे से खुलकर बात करने, मन की बात साझा करने और बिना जज किए सुनने की आदत डालनी चाहिए। एक-दूसरे की इच्छाओं और भावनाओं को समझना बहुत जरूरी है।

सारांश – एक पति पत्नी के रिश्ते को संभालने और एक दूसरे के लिए शांति का स्त्रोत बनने का एक मात्र उपाय है की आप एक दूसरे से हर विषय पर बात करे और कभी भी अपने साथी के साथ कुछ भी साझा करने से गबराये नहीं |