चातुर्मास के लगते ही हमे कुछ नियम का पालन करना पड़ता है जिनको आज हम विस्तार में जानेगे और जानेगे की चातुर्मास किसे कहते है और यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है |
चातुर्मास क्या होता है
चातुर्मास के अन्दर चार महीने आते है आषाढ़ माह, श्रावण माह, भादवा माह और आस्विन माह | और इन चार महीनो मे भगवान विष्णु सोने की मुद्रा में चले जाते है
और पृथ्वी को चलाने का भार बाकी भगवान को दे देते है | और भगवान विष्णु के शयन करने पर चातुर्मास्य में जो कोई नियम का पालन करता है, उससे अनन्त फल की प्राप्ति होती है।
तो आईये जानते है चातुर्मास मे हमे कोनसे नियम का पालन करना चाहिए |

चातुर्मास व्रत तथा उसके पालनीय नियम
इन चार महीनो मे हमे भगवान् विष्णु के संतोष/शांति के लिये नियमित जप, हवन, स्वाध्याय अथवा व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये। अगर कोई व्यक्ति भगवान वासुदेव के उद्देश्य से केवल शाकाहारी भोजन करे और वर्षा ऋतु के चार महिने व्यतीत करने से वह धनी होता है।
जो भगवान विष्णु के शयनकाल में प्रतिदिन नक्षत्रों का दर्शन करके ही एक समय भोजन करता है वह धनवान, रुपवान और माननीय होता है। जो एक दिन का अंतर देकर भोजन करते हुए चौमासा व्यतीत करता है, वह सदा वैकुण्टधाम में निवास करता है।
भगवान जनार्दन के शयन करने पर जो छठे दिन भोजन करता है, वह राज सूर्य तथा अश्वमेघ यज्ञों का सम्पूर्ण फल पाता है जो सदा दिन-रात उपवास करके चौथे दिन भोजन करते हुए चौमासा बिताता है
वह संसार में फिर किसी प्रकार का जन्म नहीं लेता है। जो श्री हरि के शयन काल में व्रत परायण होकर चौमासा व्यतीत करता है। वह अग्निष्टोमय यज्ञ का फल पाता है। जो भगवान मधुसूदन के शयन करने पर अयाचित अन्न का भोजन करता है, उसे अपने भाई-बंधुओं से कभी वियोग नहीं होता है।
जो मानव ब्रह्मचारी रहकर चौमासा व्यतीत करता है वह श्रेष्ठ विमान पर बैठकर स्वेच्छा से स्वर्गलोक में जाता है। जो चौमासे में नमकीन वस्तुओं व नमक को छोड़ देता है, उसके सभी पूर्व कर्म सफल होते हैं।
जो चौमासे में प्रतिदिन स्वाहान्त विष्णुसुक्त के मंत्रों द्वारा तिल और चावल की आहुति देता है, वह कभी भी रोगी नहीं होता है। चातुर्मास में प्रतिदिन स्नान करके जो भगवान विष्णु के आगे खड़ा होकर “पुरुष सूक्त” का पाठ करता है, उसकी बुद्धि बढ़ती है।
जो अपने हाथ में फल लेकर मौन भाव से भगवान विष्णु की 108 परिक्रमा करता है। उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो अपनी शक्ति के अनुसार चौमासे में ब्राह्मण भोजन करवाता है, उसे अग्निष्टोमयज्ञ का फल प्राप्त होता है।