विनम्रता की कहानी – लघु कथा

विनम्रता की कहानी – एक बार की बात है एक अमरीकी संसद में एक विपक्षी सदस्य ने लिंकन का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘क्या आपको पता है, यह वही लिंकन हैं, जो कभी अपने पिता के साथ जूते बनाते थे?

यह व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी जानबूझकर उनकी पृष्ठभूमि को नीचा दिखाने के लिए की गई थी। पूरे सदन में खामोशी छा गई, लेकिन लिंकन ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया-‘हां, मैं जानता हूं।

मेरे पिता जूते बनाते थे और बड़े गर्व से बनाते थे। अगर इस सदन में किसी ने उनके बनाए जूते पहने हैं और कोई सिलाई ढीली हो, तो कृपया मुझे बताएं- मैं खुद उसे ठीक कर दूंगा। मैं भी वही काम करता था और मुझे उस पर कोई शर्म नहीं।’

पूरा सदन सन्न रह गया, फिर तालियों से गूंज उठा। उस दिन न केवल लिंकन ने व्यंग्य को आत्मसम्मान में बदला, बल्कि यह भी दिखाया कि विनम्रता में कितनी शक्ति होती है। आत्मसम्मान वह ढाल है, जो आलोचना को सम्मान में बदल देती है