प्रकृति से बाते करे कहानी

प्रकृति से बाते करे कहानी – एक वक्त था, जब सबकुछ ठहरा था। उस वक्त हर कोई अपने-अपने दौर से गुजर रहा था। मैं भी अपने आपको जितना समझती हूं, उस नाते एक अंतर्मुखी व्यक्तित्व के चलते किसी से भी बातें अक्सर कम ही होती थीं।

मुझे बचपन के वो किस्से याद आए, जब गर्मियों की छुट्टी में, मैं छत पर दिखाई दे रहे पेड़ों के शिखर को हवाओं में लहराता देख, उनसे घंटों बातें कर लिया करती थी। और मानो वो पेड़ भी जवाब में मुझे अपने पत्तों के जरिए कुछ इशारे कर देते थे।

फिर क्या, मैंने अपने आसपास मौजूद पेड़ों से फिर से बातें करना शुरू कर दिया। उनसे बातें करके कुछ-कुछ बेहतर महसूस हुआ। और कभी कभी तो उनके सान्निध्य में

कुछ सवालों के जवाब भी अपने आप मिल जाते। वो मेरी उन परिस्थितियों के साथी बने। मैं उन वृक्षों की, प्रकृति की आभारी हूं! और सदैव रहूंगी।

ये प्रकृति तो हमेशा सकारात्मकता का संचार करते रहती है, बस हमें ही इसके सान्निध्य में जाना होता है। इन्हें समझना होता है, महसूस करना होता है।

मेरी ये बातें आपको थोड़ी इम्प्रेक्टिकल लग सकती हैं, पर अनुभव तो यही है कि प्रकृति से जुड़ाव मानसिक, आत्मिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ बनौ, हमें आंतरिक मजबूती प्रदान करता है। आपको भी प्रकृति से जुड़ने का मौका मिले तो अवश्य जुड़िएगा आपको अच्छा लगेगा।