योगिनी एकादशी व्रत और कथा – आषाढ़ माह

योगिनी एकादशी व्रत और कथा – यह एकादशी आषाढ़ कृष्ण पक्ष में मनायी जाती है। इस एकादशी के प्रभाव से पीपल वृक्ष काटने से उत्पन्न पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

व्रत की पूजा विधि – सूर्योदय से 2 घंटे पहले उठ जाये और उसके बाद बिना कुछ बोले भगवान विष्णु को प्रणाम करके अपने दिन की शुरुवात करे| उसके बाद नहा धो कर भगवान गणेश की वंदना करके पूजा की शुरुवात करे

और भगवान विष्णु की पूजा करे और उसके बाद हो सके तो छोटा सा हवन करे भगवान विष्णु के नाम का और उसके बाद योगिनी एकादशी की कथा सुनकर (जो की निचे दी गयी है) अपने दिन का आरम्भ करे |

किस भी व्रत को करते समय कुछ सामान्य और महत्वपूर्ण नियमो का पालन करना पड़ता है उन नियमो को जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाये |

योगिनी एकादशी चातुर्मास के आषाढ़ माह मे आती है और चातुर्मास मे भगवान विष्णु निंद्रा में चले जाते है इसलिए चातुर्मास मे हमे कुछ नियमो का पालन करना पड़ता है उन नियमो को जानने के लिए निचे दिए गए लिंक पर जाये |

योगिनी एकादशी का व्रत और उसकी कथा
योगिनी एकादशी का व्रत और उसकी कथा

योगिनी एकादशी व्रत की कथा

योगिनी एकादशी व्रत कथा – प्राचीन समय की बात है। एक नगरी अलका पुरी में धनद कुबेर के यहां एक हेम नामक माली रहता था। वह भगवान शंकर के पूजन के लिये नित्य प्रति मान सरोवर से फूल लाया करता था।

एक दिन की बात है वह कामोन्नत होकर अपनी स्त्री के साथ स्वच्छन्द विहार करने के कारण फूल लाने में देर कर बैठा। इस कारण से कुबेर के दरबार में देर से पहुँचा।

क्रोधीत होकर कुबेर ने उस माली को श्राप दे दिया और उनके श्राप से वह कोढ़ी हो गया। एक दिन जब भ्रमण करते हुए कोढ़ी के रूप में जब वह मार्कण्डेय ऋषि के पास पहुँचा और उसने अपने ऊपर दिए गए श्राप के बारे में ऋषि को बताया और उनसे अपने श्राप का हल पूछा तो ऋषि ने योगिनी एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी और भगवान विष्णु का ध्यान करने को कहा। उसके बाद माली ने अगली आने वाली योगिनी एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ समाप्त हो गया और एक दिव्य और आकर्षित शरीर वाला बन गया और वह स्वर्गलोक को प्राप्त हो गया।

इसी प्रकार हमे भी अपने ऊपर पड़ी बुरी नजर या श्राप को ख़त्म करने के लिए योगिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए |